संपत्ति के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, केंद्र और केरल सरकार से मांगा जवाब

नई दिल्ली,

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 17 अप्रैल को एक अहम संवैधानिक सवाल पर विचार करने की सहमति दी कि क्या किसी मुस्लिम व्यक्ति को, इस्लाम धर्म को छोड़े बिना, धार्मिक शरीयत कानून के बजाय धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून के दायरे में लाया जा सकता है। यह मामला केरल के त्रिशूर निवासी नौशाद के.के. की याचिका पर आधारित है, जिन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें मुस्लिम पर्सनल लॉ की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत संपत्ति के अधिकार दिए जाएं।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस याचिका को संज्ञान में लेते हुए केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि इस याचिका को पहले से लंबित समान मुद्दों वाली याचिकाओं के साथ जोड़कर सुनवाई की जाएगी।
इससे पहले अप्रैल 2023 में केरल के अलप्पुझा निवासी और एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल की महासचिव सफिया पी एम ने भी सुप्रीम कोर्ट में ऐसी ही याचिका दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने खुद को नास्तिक बताते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ की बजाय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति के अधिकार की मांग की थी। इसी तरह ‘कुरान सुन्नत सोसाइटी’ की ओर से भी 2016 में इसी मुद्दे पर याचिका दायर की गई थी, जो अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
इन याचिकाओं में खास तौर पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 58 को चुनौती दी गई है, जो कहती है कि यह कानून मुस्लिमों और हिंदुओं पर लागू नहीं होता। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति धर्म न छोड़ते हुए भी शरीयत कानून का पालन नहीं करना चाहता, तो उसे संविधान प्रदत्त समान नागरिक अधिकारों के तहत यह छूट मिलनी चाहिए।
अब इन तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी, जिससे यह तय हो सकेगा कि एक धर्म विशेष के व्यक्ति को अपनी आस्था को छोड़े बिना भी धर्मनिरपेक्ष कानून की छूट दी जा सकती है या नहीं।

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