उत्तराखंड के दूरस्थ गांव के लोग आज भी निभा रहे अपने पूर्वजों की शादी ब्याह के रीति रिवाज

देहरादून

उत्तराखंड के दूरस्थ गांव में आज भी गांव के लोग अपने पूर्वजों की शादी ब्याह की रीति रिवाजों व परम्पराओं को निभा रहे हैं। यहां पर्यावरणविद वृक्षमित्र डाक्टर त्रिलोक चन्द्र सोनी ने बताया कि जनपद चमोली के सीमांत ब्लाक देवाल के पूर्णा गांव में कांति देवी व जयबीर राम बधाणी के सुपूत कृष्णा के विवाह पर तिमला के पत्तो से पत्तलों व पूड़े को बनाये गए जिसे शुभ माना जाता हैं इन्ही पत्तलों पर पूड़ी, पकोड़ी, अरसा, हरी सब्जी व दही की ठेकी को शादी पर दुल्हन के यहां देना सगुन माना जाता हैं। इस अवसर पर पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते है तिमले के पत्तांे से पत्तल व पूड़े उस समय इसलिए बनाया करते थे लोगों में गरीबी थी संसाधन नही हुआ करते थे और बारातियों को इतने थाली, गिलास लाना मुश्किल था इसलिए बारात से पहले मंगल स्नान के दिन गांव के सभी बुजुर्ग तिमले के पत्तों के पत्तल व पूड़े बनाते थे ताकि मेहमानों को खाने व पानी पीने में इनका प्रयोग किया जा सके और बारातियों को कोई दिक्कत न हो। उन्होंने कहा कि यही नही दूल्हा पक्ष पूड़े, हरी सब्जी व दही की ठेकी को सगुन के तौर पर दुल्हन के यहां भी ले जाते थे ताकि बरातियों को वहां भी कोई परेशानी ना हो आज यही गांव की रीति रिवाज व परम्परा बनी हैं जिसे आज भी निभाई जाती हैं यही अपनापन रिश्तों में मजबूती व एक सूत्र में बांधकर भाईचारे, प्रेम बन्धुत्व बनाई रखती थी। इस अवसर पर अनेकों ग्रामीण शामिल थे।

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